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दिल्ली उच्च न्यायालय मध्यस्थता अधिसूचनाएं, 2004

ये नियम मध्यस्थता एवं समाधान नियम, 2004 कहलाएं जायेंगे। ये नियम दिल्ली उच्च न्यायालय अथवा दिल्ली उच्च न्यायालय के किसी भी अधीनस्थ न्यायालय में लंबित किसी भी वाद अथवा अन्य कार्यवाही से सबंधित समस्त मध्यस्थता एवं समाधान कार्यवाहियों पर लागूं होंगे । दिल्ली न्यायालय के समक्ष या, किसी अन्य न्यायलय अथवा न्यायाधिकरण में लंबित किसी भी बाद अथवा अन्य कार्यवाही से संबंधित मध्यस्थता कार्यवाही को, दिल्ली उच्च न्यायालय मध्यस्थता एवं समाधान केन्द्र अथवा विधिक सेवा अधिकरणों द्वारा स्थापित किसी भी अन्य मध्यस्थता केन्द्र को निर्दिष्ट किया जा सकता है। उच्च न्यायालय मध्यस्थता एवं समाधान केन्द्र को निर्दिष्ट किया जाने वाला ऐसा कोई भी मामला, दिल्ली उच्च न्यायालय मध्यस्थता एवं समाधान केन्द्र के चार्टर द्वारा विनियमित होगा तथा उक्त मध्यस्थता कार्यवाही पर वर्तमान नियम, यथावश्यक परिवर्तन सहित, लागू होंगे।

(क) वाद अथवा अन्य कार्यवाही के पक्षकार उनके बीच मध्यस्थता करने हेतु एकमात्र मध्यस्थ/ समाधानकत्र्ता के नाम पर सहमत हो सकते हैं।

(ख) जहाँ पर पक्षकारों के दो अथवा अधिक संवर्ग है तथा एक मध्यस्थ/ समाधानकत्र्ता पर सहमत होने में असमर्थ हैं तो न्यायलय प्रत्येक पक्ष से मध्यस्थ/ समाधानकत्र्ता को नामाँकित करने हेतु कह सकता है अथवा जैसा उचित समझें, मध्यस्थ / समाधानकत्र्ता/नामाँकित / नियुक्त कर सकता है । (ग) जहाँ पक्षकार खण्ड (क) के अन्तर्गत एकमात्र मध्यस्थ / समाधानकत्र्ता पर सहमत हैं अथवा जहाँ पर खण्ड (ख) के अन्तर्गत न्यायलय द्वारा मध्यस्थ / समाधानकत्र्ता / नियुक्त किया जाता है, तो अनिवार्यतः यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा मध्यस्थ / समाधानकत्र्ता नियम 3 में विनिर्दिष्ट मध्यस्थ / समाधानकत्र्ताओं के पैनल से ही हो और न ही यह कि वह नियम 4 में विनिर्दिष्ट योग्यताएँ धारण करता हो परन्तु वह ऐसा व्यक्ति नहीं होना चाहिए जो नियम 5 में विनिर्दिष्ट निर्योग्यताओं से ग्रस्त हो ।

(क) उच्च न्यायालय वादों अथवा कार्यवाहियों में पक्षकारों के मध्य मध्यस्थ / समाधानकत्र्ता की नियुक्ति किये जाने के प्रयोजन से मध्यस्थों / समाधानकत्र्ताओं का एक पैनल तेयार करेगा तथा इन नियमों को प्रवृत होने के 30 दिनों के भीतर उसकी प्रतिलिपि उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ को दिये जाने के साथ नोटिस बोर्ड पर लगाएगा ।,
(ख) (1) ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश वादों अथवा कार्यवाहियों में पक्षकारों के बीच मध्यस्थता किये जाने के प्रयोजन से इन नियमों के आरम्भ से 30 दिनों के भीतर मध्यस्थ / समाधानकत्र्ताओं का एक पैनल तैयार करेगा तथा उसका अनुमोदन किये जाने हेतु उच्च न्यायालय को प्रस्तुत करेगा । उक्त पैनल को उच्च (न्यायालय द्वारा परिवर्तन सहित अथवा बिना कोई परिवर्तन किये, जो ज़िला एवं सत्र न्यायधीश द्वारा उक्त पैनल के प्रस्तुतीकरण के 30 दिनों के भीतर किये जायेंगे, अनुमोदन कर दिये जाने पर नोटिस बोर्ड पर लगा दिया जायेगा ।

(ख) (2) जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा खण्ड (प) ने विनिर्दिष्ट उक्त पैनल की प्रतिलिपियां सभी अधीनस्थ न्यायालयों जिला अघिवक्ता संघ को अग्रेषित की जायेंगी।
(ग) जिन व्यक्तियों के नाम पैनल में शामिल हैं, उन्हें पैनल में लेने से पूर्व उनकी सहमति ली जाएगी ।
(घ) पैनल में एक अनुलग्नक होगा जो मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं की अर्हताओं व विभिन्न क्षेत्रों में उनके व्यवसायिक या तकनीकी अनुभवों का ब्योरा देता हो ।
(ड) खण्ड (क) और (ख)(प) के अन्तर्गत नियुक्त मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं का पैनल सामान्यतः नियुक्ति की तिथि से एक वर्ष की अवधि के लिए रहेगा और मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं या किसी मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के पैनल का अतिरिक्त विस्तारण उच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय की पूर्वानुमति से ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश के विवेक पर होगा।

नियम 4: नियाम 3 के अन्तर्गत मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं के पैनल मेे निम्नलिखित व्यक्तियों को सूचीबद्ध किया जा सकता है ; जैसे
(क)

  1. भारत के उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश ;
  2. उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत न्यायाधीशगण ;
  3. सेवानिवृत जिला एवं सत्र न्यायाधीशगण या दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवा के सेवानिवृत अधिकारीगण ;
  4. ज़िला एवं सत्र न्यायधीश या दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवा के अधिकारीगण ;

(ख) उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों या ज़िला न्यायालयों के स्तर पर विधिज्ञ परिषद में कम से कम 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले विधि व्यवसायी ।
(ग) कम से कम 15 वर्ष का अनुभव रखने वाले विशेषज्ञ या अन्य पेशेवर व्यक्ति ।
(घ) वे व्यक्ति जो स्वयं मध्यस्थता / समाधान में विशेषज्ञ हों

मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं के रूप में पैनल में लिए जने
हेतु निम्नलिखित व्यक्तियों को निरर्हित समझा जाएगा ;
(क) कोई भी व्यक्ति जिसे दिवालिया अधिनिर्णित कर दिया
गया हो या वे व्यक्ति हैं

  1. जिनके विरूद्ध किसी दण्ड न्यायालय द्वारा नैतिक अक्षमता वाले आपराधिक आरोप लगाए गए हों और जिनके विरूद्ध ऐसे आरोप विचाराधीन हो;
  2. वे व्यक्ति जिन्हें दण्ड न्यायालय द्वारा नैतिक अक्षमता वाले किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो ।

(ख) कोई भी व्यक्ति जिसके विरूद्ध समुचित अनुशासनिक अधिकारी द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही विचाराधीन हो अथवा किसी दण्ड में परिणत हो गई हो।
(ग) कोई भी व्यक्ति जो विवाद/विवादों की विषय-वस्तु में हित रखता हो या उससे जुड़ा हो या किसी भी एक पक्ष से अथवा उनका प्रतिनिधित्व करने वालों से संबंधित हो जब तक कि ऐसा आक्षेप अभी पक्षों द्वारा लिखित रूप में अधित्यक्त नहीं किया जाता।
(घ) कोई भी बिधि व्यवसायी जो वाद में या अन्य कार्यवाही/कार्यवाहियों में किसी भी पक्षकार के लिए उपस्थित हुआ हो या हो रहा हो।
(ड.) इसी प्रकार की अन्य श्रेणियों के व्यक्ति जो उच्च न्यायालय द्वारा अधिसूचित किए जाएं ।

उच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय की पूर्वानुमति से जिला एवं सत्र न्यायाधीश अपने विवेकानुसार समय≤ पर, मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं के पैनल में किसी भी व्यक्ति का नाम जोड़ सकते हैं अथवा हटा सकते हैं ।

नियम-3 में वर्णित मध्यस्थों/समाधानकत्र्ताओं के पैनल में किसी भी व्यक्ति को नामांकित करते समय, न्यायालय उसकी विवादों को सुलझाने की उपयुक्तता पर विचार करेगा तथा ऐसे व्यक्तियों को प्राथमिकता देगा जिनका मध्यस्थता/समाधान-कार्य का सफल एवं सुस्पष्ट रिकार्ड हो अच्छा जिनके पास मध्यस्थता/समाधान-कार्य में विशेष योग्यता अथवा अनुभव हो।

(क) जब किसी व्यक्ति से उसकी मध्यस्थ/समाधानकर्ता  के रूप में प्रस्तावित नियुक्ति के संबंध में सम्पर्क किया जाता है, तब वह व्यक्ति ऐसी किसी भी परिस्थिति जिससे उसकी स्वतन्त्रता अथवा निष्पक्षता पर युक्तियुक्त संदेह की संभावना हो, को प्रकट करेगा।
(ख) प्रत्येक मध्यस्थ/समाधानकर्ता  अपनी नियुक्ति के समय से लेकर, मध्यस्थता/समाधान की कार्यवाही की सम्पूर्ण अवधि तक, बिना देर किये, पक्षकारों को, उपबंध (क) में वर्णित ऐसी किसी भी परिस्थ्तिि के अस्तित्व को प्रकट करेगा।

नियम-8 कं अन्तर्गत, मध्यस्थ/समाधानकर्ता  द्वारा कोई अन्य जानकारी प्राप्त होने पर, यदि न्यायलय, जहाँ वाद अथवा कार्यवाही विचाराधीन है, सन्तुष्ट है कि उक्त सूचना के द्वारा मध्यस्थ/समाधानकर्ता  की स्वतन्त्रता अथवा निष्पक्षता पर एक युक्तिसंगत संदेह उत्पन्न हो गया है, तो न्यायलय उसकी नियुक्ति को वापस ले सकता है तथा उसके स्थान पर किसी अन्य मध्यस्थ/समाधानकर्ता की नियुक्ति कर सकता है ।

(क) मध्यस्थता/समाधान की कार्यवाही में मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया के लिए पक्षकार सहमत हो सकते हैं ।
(ख) जब पक्षकार मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा अपनाए जाने वाली किसी प्रक्रिया से सहमत न हों, तब मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता आगे वर्णित प्रक्रिया अपनाएगाः

  1. वह पक्षकारों से विचार विमर्श के उपरान्त प्रत्येक मध्यस्थता/समाधान सत्र की जो तिथियाँ तथा समय-सूची नियत करेगा, उन पर सभी पक्षकारों को उपस्थित होना पडेगा ।
  2. वह उच्च न्यायालय अथवा जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा विहित स्थान अथवा ऐसे स्थान पर जहाँ सभी पक्षकार तथा मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता संयुक्त रूप से सहमत हों मध्यस्थ/समाधान कार्यवाही करेगा।
  3. वह पक्षकारों के साथ संयुक्त रूप से अथवा पृथक- पृथक बैठकें यर सकता है।
  4. प्रत्येक पक्षकार, किसी भी सत्र से 10 दिन पूर्व, मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को एक लघु ज्ञापन उपलब्ध कराएगा जिसमे, उनके मत में जिन मुद्दों का समाधान किया जाना आवश्यक है, की जानकारी उन मुद्दों के बारे में उनकी स्थिति तथा वह सब जानकारी जो मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को मुद्दों को समझने के लिए सम्यक् रूप से अनावश्यक हो, का ब्यौरा होगा और ऐसे ज्ञापन का पक्षकारों के मध्य परस्पर आदान-प्रदान भी किया जायेगा । तथापि, उपयुक्त / समुचित मामलों में 10 दिन की अवधि को मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के बिवेकानुसार कम भी किया जा सकता है ।
  5. प्रत्येक पक्षकार, मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को ऐसी अन्य जानकारी भी उपलब्ध कराएगा जिसकी आवश्यकता उसे मुद्दों का समाधान करने के लिए हो सकती है ।

(ग) जहाँ एक से अधिक मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता हों, प्रत्येक पक्षकार द्वारा नामाँकित मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता विवादों के समाधान के लिए पहले उस पक्षकार, जिसने उसे नामाँकित किया है, से परामर्श करके दूसरे मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता से बात कर सकता है ।

मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 अथवा भारतीय भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 से आबद्ध नहीं होगा किन्तु वह समानता व न्याय के सिद्धान्तों का पक्षकारों के अधिकारों एवं दायित्वों, व्यापार (यदि कोई हो) की मान्यताओं और विवादों से संबद्ध परिस्थितियों पर विचार करते हुए पालन करेगा।

रत्मान्यतः पक्षकार, मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा अधिसूचित सत्र व वैठक में, व्यक्तिगत रूप से या इस हेतु विधिवत् रूप से नियुक्त किसी व्यक्ति (अटार्नी) के माध्यम से उपस्थित होंगे । तथापि, ऐसे सत्रों या बैठकों मे, मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता की अनुमति से, अधिवक्ता (काउंसेल) द्वारा उनका प्रतिनिधित्व किया जा सकता है ।

जो पक्षकार भारत में नहीं रहते है, सत्रों व बैठकों में उनका प्रतिनिधित्व विधिवत् रूप से नियुक्त व्यक्ति (अटार्नी) द्वारा किया जा अता है । तथापि, ऐसे सत्रों या बैठकों में अधिवक्ता (काउंसेल) द्वारा उनका प्रतिनिधित्व किया जा सकता है ।

यदि कोई पक्षकार मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा अधिसूचित किसी सत्र या बैठक में जानबूझ कर अनुपस्थित रहता़ है तो दूसरा पक्षकार अथवा मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता जिस न्यायालय में वाद या कार्यवाही लम्बित हो, में प्रार्थना कर सकता है और मामले में न्यायलयए मामले के तथ्यों एवं परिथ्तियों पर विचार करते हुए, समुचित निर्देश दे सकता है।

मध्यस्थता/समाधान कार्यवाहियों का संचालन सहज करने हेतु पक्षकार आथवा मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता, पक्षकारों की सहमति से, किसी उपयुक्त संस्थान या व्यक्ति द्वारा दी जाने वाली प्रशासनिक सहायता की व्यवस्था कर सकते हैं।

(क) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को सूचना पत्र देते हुए बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के, वाद का कोई भी पक्षकार दूसरे पक्षकार को कार्यवाहियों की किसी भी अवस्था में समाधान का प्रस्ताव है सकता है । 
(ख) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को सूचना पत्र देते हुए वाद का कोई भी पक्षकार कार्यवाहियों की किसी भी अवस्था में “प्रतिकूल प्रभाव के साथ” दूसरे पक्षकार को प्रस्तुत कर सकता है ।

मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता प्रयास करेगा कि पक्षकार अपने विवादों का स्वेच्छापूर्वक समाधान करें। एवं प्रत्येक पक्षकार अपना दृष्टिकोण दूसरे पक्षकार को प्रस्तुत करे । मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता मुद्दों की पहचान हेतु पक्षकारों को सहयोग देगा, उनकी गलतफहमियों को कम करेगा, उनकी प्राथमिकताओं को स्पष्ट करेगा और विवादों का हल करने हेतु उनके मध्य समझोते के पहलुओं का अन्वेषण करेगा और विकल्प दूंढेगा । मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता इस बात पर जोर डालने का भी प्रयास करेगा कि पक्षकारों का यह दायित्व है कि वे ऐसे निर्णय लें जो उन्हें प्रभावित करते हैं किन्तु वह पक्षकारों पर समझौते कीं कोई भी शर्त न लगाएगा ।

पक्षकारों को इस बात के लिए समझाया जाएगा कि मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता केवल विवादों को सुलझाने के उद्देश्य से निर्णय पर पहुंचाने हेतु सहायक है एवं यह कि वह किसी भी प्रकार के समझौते हेतु उन्हें बाध्य नहीं करेगा तथा उन पर कोई समझौता थोप नहीं सकता है और न ही मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता कोई भी ऐसा आश्वासन देगा कि मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता से समझौता हो ही जाएगा। मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता पक्षकारों पर किसी प्रकार का निर्णय अधिरोपित नहीं कर सकेगा ।

जब तक कि निर्देश देने वाला न्यायालय, रवयं ही अथवा किसी भी पक्षकार के निवदेन पर और सब पक्षकारों को सुनकर, यह मत प्रकट न करे कि समय सीमा का विस्तार आवश्यक अथवा उपयोगी है, पक्षकारों की मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के सम्मुख प्रथम उपस्थिति के लिए नियत तिथि के 90 दिनों के अवसान पर मध्यस्थसमाधान प्रक्रिया समाप्त हो जायेगी । परन्तु ऐसा कोई भी परिवर्तन 30 दिनों कीं अतिरिक्त अवधि से अधिक नहीं हो सकता है।

सभी पक्षकार विवाद/विावदों को सुलझाने के आशय से, यदि सम्भव हो सके तो, कार्यवाहियों में सद्भावपूर्ण तरीक से सम्मिलित होने के लिए वचनबद्ध होंगे।

(क) जब मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को किसी भी पक्षकांर से. विवादों से सम्बन्धित वास्तविक सूचना मिलती है तो वह अन्य पक्षकार को उस सूचना के सारांश को प्रकट करेगा ताकि अन्य पक्षकार को उसके उचित स्पष्टीकरण, जिसे वह ठीक समझे, को प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त होः परन्तु यह है कि जब कोई पक्षकार मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को कोई सूचना इस शर्त पर देता है कि उस सूचना को गोपनीय रखा जाये तो मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता दूसरे पक्षकार को वह सुचना नहीं देगा ।

(ख) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के रूप में कार्यं कंरते हुये, उसके द्वारा प्राप्ति या अवलोकन, या अभिलेखों का निर्माण, प्रतिवेदन या अन्य प्रपत्र गोपनीय होगंे तथा मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को उन दस्तावेजों के बारे में कोई सूचना प्रकट करने के लिये और न ही ऐसे कोई तथ्य जो कि मध्यस्थ/समाधान के दौरान उद्घाटित हुए हांे, की किसी अन्य प्राधिकारी अथवा किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह के समक्ष प्रकट करने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा ।

(ग) पक्षकार मध्यस्थ/समाधान के दौरान उद्घाटित हुए तथ्यों के बारे में गोपनीयता बनाए रखेंगे तथा किन्ही भी अन्य कार्यवाहियों में न तो उक्त सूचना का अवलम्बन करेंगे न ही उसे प्रस्तुत करेंगे, जैसे कि:

  1. मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता कार्यवाहियों के दौरान किसी पक्षकार द्वारा व्यक्त किये गये विचार
  2. मध्यस्थ/समाधान के दौरान प्राप्त दस्तावेजो जिनके प्रति गोपनीयता बरता जाना अभिव्यक्त रूप से अपेक्षित या पक्षकारों अथवा (1) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा दी गई सूचना, अन्य टिप्पणियां व प्रारूप
  3. मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा व्यक्त किये गये विचार अथवा प्रस्ताव
  4. मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता कार्यवाहियों के दौरान किसी एक पक्षकार द्वारा दी गई स्वीकृति, तथा
  5. यह तथ्य कि किसी एक पक्षकार ने एक प्रस्ताव को स्वीकार करने या न करने की इच्छा प्रकट की थी ।

(घ) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता कार्यवाहियों के दौरान किसी भी प्रकार की आॅडियो / विडियो रिकार्डिग नहीं की जाएगी, तथा
(ड़) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के द्वारा पक्षकारों अथवा गवाहों के बयान अभिलिखित नहीं किये जायेंगे ।

नियम-12 ने वर्णित प्रक्रिया के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पक्षकार का प्रतिनिधित्व करता है, तो मध्यस्थ/समाधान सत्रों व बैठकों को एकान्त में किया जायेगा। तथापि अन्य व्यक्ति केवल मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता की सहमति तथा पक्षकारों की अनुमति से ही उपस्थित हो सकते हैं।

मध्यस्थ/समाधान कार्यवाहियों के दौरान मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा दी गई सद्भावनापूर्ण कोई बात अथवा उसके द्वारा की गई कोई चूक के लिये उसे किसी सिविल या आपराधिक कार्यवाही के लिये दायित्वाधीन नहीं ठहराया जायेगा और न ही उसे किसी पक्षकार द्वारा किसी विधि न्यायालय के समक्ष किसी वाद या कार्यवाही में उसके द्वारा मध्यस्थ/समाधान की कार्यवाही के दोरान एकत्रित सूचना या उसके द्वारा की गई कार्यवाही या उसके द्वारा तैयार अथवा उसके समक्ष प्रस्तुत प्रारूपों अथवा अभिलेखों के विषय में प्रमाणित करने हेतु बुलाया जायेगा।

(क) मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता की निष्पक्षता व न्यायालय मंे पक्षकारों का विश्वास बनाये रखने के लिए न्यायालय व मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के बीच इस नियम के खण्ड (ख) व (ग) के अतिरिक्त कोई सम्पर्क नहीं होना चाहिये ।

(ख) यदि न्यायलय तभी मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के मध्य कोई संवाद आवश्यक हो, तो ऐसा कोई भी सवार्द लिखित में होगा व उसकी प्रतिलिपियां पक्षकारों अथवा विधिवत् नियुक्त अटॉर्नी या अधिवक्ता को दी जायेंगी ।
(ग) न्यायालय तथा मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के मध्य सवाद मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के द्वारा संवाद तक सीमित होगा:

  1. पक्षकार द्वारा उपस्थित होने से विफल होने रहने के बारे में, न्यायालय के साथ
  2. पक्षकारों की सहमति के बारे में न्यायालय के साथ
  3. मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के इस निष्कर्ष के बारे में कि वह मुकद्दमा / मामला मध्यस्थता /समाधान के द्वारा निपटाया नहीं जा सकता तथा
  4. यह कि पक्षकारों ने विवादों को सुलझा लिया है ।

(क) ऐसी स्थिति में जब पक्षकारों के बीच वाद या कार्यवाही के सभी मुद्दों या कुछ मुद्दों पर सहमति हो जाती है तो ऐसा करार लिपिबद्ध किया जायेगा व पक्षकारों या उनके द्वारा नियत अटॉर्नी के द्वारा हस्ताक्षरित किया जायेगा। यदि किसी अधिवक्ता ने जिन्हें पक्षकारों का प्रतिनिधित्व किया है, तो ऐसी स्थिति में समाधानकत्र्ता / मध्यस्थ समझौता करार पर उसके हस्ताक्षर भी ले सकता है ।

(ख) पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षरित ऐसा करार मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता को प्रस्तुत किया जायेगा । इसे वह अपने द्वारा हस्ताक्षरित व्याख्यात्मक-पत्र के साथ न्यायालय जिसमें उक्त वाद या कार्यवाही विचाराधीन है, को अग्रेषित करेगा ।

(ग) ऐसी स्थिति में जब नियम -18 में वर्णित समय सीमा के भीतर पक्षकारों के बीच किसी करार की सहमति नहीं बनती है अथवा जहाँ मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता का यह मत हो कि समझौते कीं कोई संभावना नहीं है, ऐसी स्थित में यह न्यायालय को लिखित रूप में सूचित करेगा।

(क) किसी समझोते की प्राप्ति पर न्यायालय साधारणतः सात दिनों के भीतर सुनवाई की तिथि नियत करेगा, लेकिन किसी भी स्थिति में यह अवधि 14 दिन से अधिक नहीं होगी। ऐसी किसी सुनवाई की तिथि पर, यदि न्यायालय इस बात पर सन्तुष्ट हो कि पक्षकारों ने अपने विवाद/विवादों का निपटारा कर लिया है, तो ऐसी स्थिति में न्यायालय उसकी शर्तो के अनुसार डिक्री पारित करेगा

(ख) यदि किसी बाद या कार्यवाही में कुछ विशेष मुद्दों का ही समझौते के द्वारा निपटारा हुआ हो, तथा इस सम्बन्ध में खण्ड (क) के अनुसार डिक्री पारित की गई हो, ऐसी स्थिति में न्यायालय शेष मुद्दों का निपटारा करने के लिय अग्रसर होगा ।

(क) न्यायालय विवाद/विवादों कों मध्यस्थता/समाधान के लिये निर्देशित करते समय मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता का शुल्क नियत कर सकता है ।
(ख) जहाँ तक संभव हो, प्रत्येक सत्र या बैठक के शुल्क के स्थान पर एकमुश्त रकम निर्धारित की जा सकेगी ।
(ग) ऐसी स्थिति में जहॉ नियम 2 के खण्ड (ख) के अनुसार दो मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता हों, न्यायालय उनको देय शुल्क नियत करेगा, जिसे दोनों पक्षकारों के संवर्ग बराबर-बराबर वहन करेंगे ।

(घ) मध्यस्थता/समाधान के व्यय जिसमें मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता का शुल्क भी सम्मिलित है, प्रशासनिक सहायता का खर्च तथा अन्य संबद्ध आनुषंगिक व्यय, विभिन्न विवादक पक्षकारों द्वारा समान रूप से अथवा न्यायलय द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट ढंग से वहन किये जायेंगे ।

(ड़) प्रत्येक पक्षकार अपनी ओर से पेश किये गए साक्षियों जिसमें विशेषज्ञ भी सम्मिलित है या दस्तावेज़ो को पेश करने का खर्च वहन करेंगे ।

(च) मध्यस्थता/समाधान के आरम्भ से पूर्व, मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता पक्षकारों को समान धनराशि, जो कि मध्यस्थता/समाधान के सम्भावित खर्च जैसा कि खड(घ) में निर्दिष्ट हैं अपने शुल्क सहित, का 40 प्रतिशत विस्तार तक अनन्तिम रूप से जमा करने के लिए निर्देशित कर सकता है। शेष 60 प्रतिशत मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के पास मध्यस्थता/समाधान की समाप्ति के पश्चात् जमा कराया जाएगा । खर्चों के लिए जमा राशि मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के द्वारा रसीदों के माध्यम से खर्च की जाएगी । खर्च का विवरण मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता द्वारा न्यायलय में जमा कराया जाएगा।

(छ) यदि कोई पक्षकार या पक्षकारगण खंड (ड.) में निर्दिष्ट राशि को अदा नहीं करता है तो न्यायालय, मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता या किसी पक्षकार के आवेदन पर सम्बंधित पक्षकारों को समुचित निर्देश जारी करेगा।

(ज) मध्यस्थ/समाधान का खर्च, जिसमें शुल्क भी सम्मिलित है, यदि पक्षकारों के द्वारा अदा नहीं किया जाता है तो न्यायालय मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता या पक्षकारों के आवेदन पर, संबद्ध पक्षकारों को धनराशि अदा करने के लिये निर्देश देगा । यदि वे उक्त धनराशि अदा नहीं करते हैं तो न्यायालय उक्त धनराशियों को ऐसे वसूल करेगा जैसेे कि वह उक्त राशि की डिक्री हो ।

मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता:

(क) इन नियमों का अनुपालन एवं अनुसरण दृढ़ता तथा सम्यक् तत्परता से करेगा ।
(ख) कोई ऐसा क्रियाकलाप या आचरण नहीं करेगा जिसे कि सम्यक् रूप से एक‘ मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के लिए अशोभनीय आचरण समझा जाता हो ।
(ग) मध्यस्थ/समाधान प्रक्रिया की निष्पक्षता एवं सत्यनिष्ठता को बनाए रखेगा।
(घ) यह सुनिश्चित करेगा कि मध्यस्थ/समाधान में आलिप्त पक्षकारों को मध्यस्थ/समाधान प्रक्रिया के प्रक्रियात्मक पहलुओं की पर्याप्त समझ तथा समुचित ज्ञान हो
(ड.) अपने आप को संतुष्ट करेगा/करेगी कि वह इस समनुदेशन को व्यावसायिक रीति से पूर्ण करने के योग्य है ।
(च) ऐसा कोई हित अथवा सम्बन्ध बताएगा जिससे निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो या जिससे पक्षपात या झुकाव होना प्रतीत होता हो।
(छ) पक्षकारों से संव्यवहार करते हुए किसी भी अनौचित्य या अनौचित्य के प्रकटीकरण से परिहार करेगा।
(ज) उस विश्वास और गोपनीयता के सम्बन्ध के प्रति निष्ठावान रहेगा जो कि मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता के कार्यालय में निहित हैं ।
(झ) एक विवाद के समाधान से सम्बन्धित सभी कार्यवाहियों का प्रवृत विधि के अनुसार संचालन करेगा।
(ट ) इस बात को मान्यता देगा कि मध्यस्थता / समाधान पक्षकारों के आत्मनिश्चय के सिद्धान्तों पर आधारित है और यह कि मध्यस्थता / समाधान प्रक्रिया पक्षकारों के स्वैच्छिक अप्रकट समझौते पर पहुंचने की क्षमता पर निर्भर करता है ।
(ठ) गोपनीयता के विषय में पक्षकारों की युक्तियुक्त अपेक्षाओं को बनाए रखेगा तथा परिणामों के बारे में वचन या गारन्टी देने से विरत रहेगा ।

जैसा कि नियम (3) में वर्णित है, जब तक मध्यस्थओं/समाधानकत्र्ताओं का पैनल उच्व न्यायालय या ज़िला न्यायधीश द्वारा नहीं बना दिया जाता, न्यायालयों द्वारा विशेष विवाद/विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता की उपयुक्तता को दृष्टिगत रखते हुए मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता मनोनीत कर सकता है जो मध्यस्थ/समाधानकत्र्ता नियम (4) में विनिर्दिष्ट व्यक्तियों की विभिन्न श्रेणियों से सम्बन्ध रखता हो तथा सम्यक् रूप् से योग्य हो एवं जो अयोग्य न हो।