क्या है मध्यस्थता ?

मघ्स्थता एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक निरपेक्ष मध्यस्थ वादी और प्रतिवादी को अपने झगडे या मामले आपसी समझ व सम्मति से सुलझाने में सहायता करता है।
यह प्रक्रिया गोपनीय और ऐच्छिक तो है ही, इसमें भागेदारी करने का भी मौका मिलता है। मामले से जुड़े सभी पक्षों को अपनी बात कहने का और आपसी विवाद के समाधान तैयार करने का अवसर मिलता है । यही कारण है कि मध्यस्थता एक मिलीजुली प्रक्रिया है - इसमें झगडा समाप्त करने की वादियों की अपनी इच्छा और उन्हें समाधान तक ले जाने का मध्यस्थ का कोशल, दोनों शामिल हैं ।

मध्यस्थता की क्या आवश्यकता है ?

मध्यस्थता झगडे खुलझाने का एक बेहतर और कारगर तरीका है - ख़ासकर आपसी संबंधों से जुड़े मसलों के लिए जिन्हें न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से सुलझाना कभी-कभी नामुमकिन हो जाता है। ये संबंध आपसी. व्यावसायिक, आनुबंधिक या सामाजिक हो सकते हैं।

क्या मध्यस्थता वाकई में सहायक है ?

जी हाँ । अक्सर आपसी वैर और द्वेष अविश्वास और अनबन पैदा कर देते हैं। लेकिन जब मध्यस्थता के दौरान सभी पक्ष आमने - सामने बैठकर बातचीत करते हैं तो मन की गांठे खुलने लगती हैं।  चूंकि मध्यस्थता औपचारिक नियमों में बंधी हुई प्रक्रिया नहीं है, सभी पक्ष अपने दिल की बात खुल कर कह सकते हैँ। ये बातें आधिकारिक व औपचारिक सीमाओं से मुक्त होती हैं। इसलिए एक लिखित समझौता भविष्य में होने वाले मनमुटाव से सभी पक्षों को बचाने और झगडे़ को जड़ से मिटाने का उत्तम साधन है ।

मध्यस्थता के फायदे क्या हैं ?

  • मध्यस्थता से समस्या और उसका समाधान, दोनों वादी के हाथ में होते हैं ।
  • कानून इसे मानता है और न्यायलय इसका प्रोत्साहन व समर्थन करते हैं ।
  • इस विकल्प का चुनाव ऐच्छिक है और हल न मिलने पर इसे स्वेच्छा से छोडा भी जा सकता है ।
  • यह प्रक्रिया गोपनीय व सरल है, साथ ही माहौल अनौपचारिक रहता है। इस प्रक्रिया में मुकद्दमे की आवश्यकता और उससे जुड़े लोगों की सुविधानुसार फेरबदल किया जा सकता है । मध्यस्थता का चुनाव मुकद्दमे के दौरान कभी भी किया जा सकता है - न्यायिक प्रक्रिया से पहले, मुकद्दमे के दौरान या अपील दायर करते वक्त। मुद्दे के पहलुओं को प्रक्रिया के दौरान बढाया - घटाया जा सकता है।
  • यह प्रक्रिया वादियों को उनके पक्ष की ताकत व कमजोरी दिखाती है जिससे समस्या का सही समाधान मिल सकता है ।
  • यह प्रणाली सब पक्षों के दूरगामी हित का सोचती है और समझौते की कई संभावनाएँ दिखाती है। इस से आपसी मतभेदों के समाधान का पूरा - पूरा मौका मिलता है।
  • यह प्रक्रिया पारस्परिक संपर्क व बातचीत को बेहतर बनाने का अवसर देती है, जो किसी भी झगडे़ को समाप्त करने के लिए ज़रूरी है ।
  • इससे कीमती समय और भाग-दौड़, दोनों बचते हैं । मध्यस्थता की प्रक्रिया में मुकद्दमे और अपील आदि के मुकाबले कहीं कम समय लगता है। न्यायालय में जो केस कई वर्ष खिंचता रहता ह, वही मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होते ही कुछ दिनों, हफ्तों या महीनों में निपट जाता है ।
  • साथ ही, अक्सर लंबी चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया में लगने वाला पैसा बचता है । झगडे सुलझाने के लिए बाकी साधनों की अपेक्षा मध्यस्थता में ख़र्च भी कम होता है। यदि मामला मध्यस्थता के रास्ते निपट जाता है तो वादी द्वारा जमा जिया गया कोर्ट शुल्क उसे वापिस कर दिया जाता है ।
  • इससे आपके रिश्ते फिर से जुड़ते हैं - इसका उद्देश्य भविष्य को संवारना है, बीते कल को कुरेदना नहीं ।
  • समझोते पर हस्ताक्षर करके समी यक्ष अपेक्षा से अधिक लाभ पा सकते हैं।
  • प्रक्रिया के अंत में विरोध मित्रता में बदल जाता है ।
  • जब इस प्रकार एक मसला सुलझ जाता है तो उससे जुडे बाकी के और झगडे़ भी समाप्त हो जाते हैं ।
  • इस प्रक्रिया में आगे अपील करने की गुंजाइश नहीं है । इससे न्यायतंत्र का वक्त और पैसा भी बचते हैं।